Eye Diference

 दृष्टि भेद
महर्षि व्यासदेव के पुत्र शुकदेव संसार मे रहते हुवे भी विरक्त थे । वे आत्म कल्याण किकि भावना से प्रेरित होकर घर से जंगल कि ओर चल दिये । तब पुत्र-मोह के वशीभूत व्यासदेव उन्हे समझाकर घर बवापिस लाने के लिये पीछे पीछे चले । मार्ग में दरिया के किनारे कुछ स्रियां स्नान कर रही थी । जब शुकदेव नदी पार कर रहे थे तब स्रियों’  ने उन्हे देखकर किसी प्रकार कि प्रतिक्रिया व्यक्त नही की , लेकिन जैसे ही उनके पिता व्यास देव को देखा तो सबने बडी तत्परता से उचित परिधान लपेट लिये – अंगोपंग ढक लिये ।
महर्षि व्यासदेव बोले , ‘’ देवियो , वह अभि मेरा जवान पुत्र तुम्हारे आगे से निकल गया , उसे देखकर तुम संकोचाई नही , ज्योही त्यो स्नान करती रही । वह युवा था , सब तरह से योग्य था ,उससे तो परदा न किया और मुझ अर्ध्द्मृतक के समान वृध्द से लज्जाकर परदा कर लिया , यह मत्भेद कुछ समज मे नही आया ? ‘’
स्त्रिया बोली  - ‘’ शुकदेव युवा होते हुऐ भी युवकोचीत विकारो से रहीत है । वह स्त्रि पुरुष के अंतर को और उसके उपयोग को भी नही जानता, उसकी दृष्टि में सारा विश्व एकरुप है । संसारिक भोगोपभोग से बालक कि तरह अबोध है , परंतु देव आपकी वैसी स्थिती नही है ।िसलिये आपकी दृष्टि से छिपने के लिये परिधान लपेट लिये है ।‘’
संसार तो हमारे चित्त का विस्तार है । चित्त को अलिप्त रखकर संसार को जीने वाले सम्यक्त्व के धारी होते है । उन्हे सम्यक्दृष्टि गृहस्थ कहा जाता है , धन्य है वे लोग जो शरिर के पार आत्मा में जिते है ।

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