परमात्मा का पता
सुना है एक भिखारी अपना
कटोरा लेकर मंदिर के द्वार पर खडा हो गया कि जो धर्मात्मा श्रीमंत मंदिर से निकलेंगे
वे मेरे भीख के कटोरे में कुछ ना कुछ जरुर डालेंगे । लेकिन मंदिर से बाहर निकलने वाले
व्यक्तीयो ने भिखारी के कटोरे मे कुछ नही डाला । उसने सोचा कि गुरुद्वारे के सामने
जाकर खडा हो जाउ – शायद वहाँ मेरा कटोरा भर जायेगा । लेकिन वहाँ भी वही हुआ और क्रम से वह मस्जिद - गिरिजाघर आदी आदी
स्थानो पर गया लेकिन शाम हो गयी उसके कटोरे में भक्तो ने कुछ नही डाला ।
निराश – हताश वह भिखारी शाम
होते होते मदिरालय के सामने हाथ में कटोरा लेकर उदास खडा है – मन में सोचता है धर्मस्थानो
से निकलने वाले भक्त लोगो ने कुछ नही दिया
तो मदिरालय के लोग क्या देंगे ।
लेकिन आश्चर्यचकित रह गया वह
। देखता है , मदिरालय से जो निकलता उसके
कटोरे में कुछ ना कुछ डालता जाता है और थोडि देर में हि उसका कटोरा भर गया ।
तब विस्मित भाव से दोनो हाथ उठाकर ऊपर कि तरफ देखता है और कहता
है – ‘’ भगवान तू भी अजीब चीज़ है – रहता कहाँ है और पता कहाँ का देता है । ‘’
सच्चाई यह है कि परमात्मा
के मंदिर मे परमात्मा उन्हीको दिखाई देता है जिनका मन मंदिर बन गया हो – अन्यथा मंदिर
मस्जिद गुरुद्वारे गिरिजाघर देवस्थान में भी
परमात्व तत्व कि अनुभूती कैसे हो सकती है । करुणा वात्सल्य से जिनका ह्र्द्य स्पंदित
न होता हो उन्हे मंदिर मे विराजीत देवता में देवता कैसे दिखाई पड सकते है ?
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