जीवन का ध्येय
एक सज्जन रेल में यात्रा कर
रहे थे । टिकिट चेकर ने टिकिट मांगा । उन्होने टिकट निकालने के लिये जेब मे हाथ डाला
। उस जेब मे टिकट नही मिला । दुसरी जेब मे हाथ डाला उसमे भी नही मिला ।
पूरा सामान ढूंढ लिया पर टिकट
नहि मिला ।
टिकट चेकर भला आदमी था यह सब
देखकर बोला – ‘’ रहने दिजीये कही खो गया
होगा । आराम से खोजकर बता दिजीयेगा । आप नेक इंसान दिखाई देते है , आप विदाऊट
टिकट नही होंगे ।‘’
वे सज्जन झुंझला कर बोले – विदाऊट टिकट कि कौन चिंता करता है
। मैं सिर्फ इसीलिये टिकिट ढुंढ रहा हूँ कि मैं जान सकू की मुझे जाना कहा है ?
ज्यादातर मनुष्य इस तरह से जीवन जी रहे हैं कि जैसे जीना कोई
मजबूरी हो ।बस जैसे तैसे जिंदगी कि गाडी खींचे जा रहे है । सुबह से शाम तक एक रुटीन
के अनुसार जीवन जी रहे है , रोजमर्रा के ढर्रे में ढली हुई जिंद्गी जी रहे
हैं ।
किसी ने कहा है –
‘’ न कोई इरादे – न हौसले बदल रहे हैं लोग ,
थके – थके से है मगर चल रहे है लोग ।
न प्यार , न ईमान , न किरदार न कोइ
उसूल
न जाने कौन से सांचे में , ढ्ल रहे है लोग ॥‘’
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