सारी जिंदगी पाणी में
एक प्राध्यापक महोदय
नौका विहार कर रहे थे । नाविक बडि कुशलता और तन्मयता से सरिता को थपथपाता हुआ अपने
लक्ष्य कि और बढ रहा था । प्राध्यापक ने पूछ हि लिया –‘’ क्यो महाशय साहित्य का कुछ अनुशीलन किया है ?
'' नही?'' उसने उदासीनता
के साथ उत्तर दिया तब तो तुम्हारी २५ प्रतिशत जिंदगी पानी में गयी । प्राध्यापक ने
गर्व से कहा ।
'' मुझे पता नही जिंदगी का पाणी में जाना किस
चिडिया का नाम है ।'' नाविक ने फिर भि उदासींता के साथ उत्तर
दिया ।
'' तब तो तुम्हारि ५० प्रतिशत जिंदगी पाणी में
गयी । '' प्राध्यापक ने फिर गर्व से कहा ।
नाविक अपने कार्य मे
लीन था । उसे प्राध्यापक कि साहित्य और कला कि बातें लुभा नही सकी वह आगे बढता जा रहा
था ।
प्राध्यापक के हृद्य
मे रह रह कर साहित्य , संगीत व कला कि
बातें उभर रही थी । उससे रहा नही गया । प्राध्यापक ने तिसरा
सवाल पूछ लिया - '' क्यो नविक कला
का कुछ तो अभ्यास किया ही होगा ?''
नाविक ने फिर उसी मूड में नकारात्मक उत्तर
दिया । तब तो ७५ प्रतिशत जिंदगी पाणी में गयी । प्राध्यापक ने उसे घुरते हुए कहा ।
नाविक से रहा नही गया
। उसने प्राध्यापक से पूछा - '' क्यो महाशय २५ प्रतिशत तो बाकि है न ? मै उससे ही अपना जिवन सुखी बना लुंगा । ''
नौका चलते चलते भंवर में फसने लगी । नाविक
ने बहुत प्रयत्न किया पर उसे बचा नही पाया । इस बार नविक ने प्रश्न किया - '' क्यों
जनाब आपने साहित्य संगीत और कला का अभ्यास किया है पर तैरना भी सीखा हैं ? ''
प्राध्यापक ने हिचकियां
मारते हुए जवाब दिया - '' नहीं ''
'' तो लिजीये आपकी सारी जिंदगी पाणी में हो जायेगी
। मैं नही बचा सकूंगा । नौका भंवर में फसी जा रही है । मै तो तैरकर किनारे जा रहा हूँ
।'' नाविक ने तत्काल छलांग मारी और किनारे जा लगा ।
प्राध्यापक अपने बचाव
कि भिख मांगने लगा । नाविक के हृद्य में दया उमडी , उसने पुन: छलांग मारी और प्राध्यापक को किनारे ले आया
। प्राध्यापक का मस्तक लज्जा से निचे झुक गया ।
जिंदगी में ज्ञान के दो तल हैं
। एक व्यवहारीक और दुसरा शैक्षणिक । लेकिन इन दोनो में ज्ञान का गर्व अज्ञानता है ।
ज्ञान गर्व नही विनयगुन का धारक होना चाहिये । ज्ञान और आचरन का समागम हि फलदायक होता
हैं ।
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