प्रगती का सूत्र
चौथी बात वह नही
कह पाया । बेटा था आज्ञाकारी , उसने पिता कि बात का पालन बडी लगन से किया ।
वह गोदाम में छाव में जाता आता था । इसलिये गोदाम तक टीन का बरामदा बनवा लिया । उसने
जिसको पैसे उधार दिये वापस नही मांगे । अधिक दाम में चीज़े खरिद कर उन्हे कम दाम में
बेचने लगा । यह सब करने से उसे घाटा होने लगा । कुछ हि दिनो में व्यापार में लगा धन
आधा हो गया ।
एक दिन उसके चाचा
मिलने आये । लडके से व्यापार के बारे में पूछा । लडका बोला क्या बताऊं चाचा जी पिताजी
कि बातों पर अमल करके व्यापार में घाटा हि घाटा होने लगा ।
चाचा सारी बातें
सुन कर हंसे । बोले - बेटा तुम बातों का अर्थ ठिक नही समझते । भाईसाहब का छाव में आने जाने का मतलब था , सुबह अंधेरे
में हि गोदाम में जाना और शाम को अंधेरा होनेपर हि लौटना । मतलब दिनभर मेहनत से काम
करना । दुसरी बात का अर्थ ऐसे ही लोगो को उधार देना जो बिना मांगे पैसे लौटा दे । तिसरी
बात का मतलब भी समझ , माल अधीक खरिद्ना और उसे बाजार भाव से थोडे
कम दाम में बेचना जिससे लोग तुम्हारा ही माल खरिदे । चौथी बात जो बतानी रह गयी थी वह
थी इन सब का अर्थ ठिक तरह से समझकर काम करना ।
दोस्तो , अपनी जिंदगी
में भी कई ऐसे मौके आते है जिनका अर्थ हम समझ नही पाते । लेकिन जरा सोचकर देखें तो
अर्थ काफी आसान होता है । उन्ही अर्थ को समझ कर काम करिये प्रगती आपके कदम चूमेंगी
।
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